- Early atmosphere has H and He in abundance -lighter gases escaped / प्रारंभिक वायुमंडल में हैड्रोजन और हीलियम प्रचुर मात्रा में मौजूद थे – हल्का गैसों मुक्त हुए
- During early life of the earth – extensive volcanism- degassing N, S, Water Vapour, Argon and CO2 came out पृथ्वी के प्रारम्भिक काल के द्वरान अत्यधिक ज्वालामुखी की क्रिया – , नाइट्रोजन, सल्फर, जलवाष्प, आर्गन और कार्बन डाइआक्साइड जैसे गैस मुक्त हुए
- Water vapour condensed – clouds – rainfall –washed out bulk of the CO2 into Oceans. Co2 = 0.03% / जलवाष्प संघनित हुवे और बादल का निर्माण हुवाI परिणाम स्वरुप अत्यधिक वर्षा हुई और CO2 बड़ी मात्रा में बह कर सागर में चले गए (CO2 = 0.03%)
- Oxygen – from anaerobic respiration of bacteria like, Cynobacteria ऑक्सीजन – साइनो बैक्टरिया जैसे जीवाणु के अवायवीय श्वसन से Oxygen मुक्त हुवे
Proportion of gases |
Gas | Proportion |
Nitrogen | 78% |
Oxygen | 21% |
Argon | 0.93% |
Carbon dioxide | 0.03% |
Neon | 0.0018% |
Helium | 0.00005% |
ozone | 0.00006% |
- N, O, H and Argon are permanent gases / N, O, H, और आर्गन स्थायी गैस हैं
- Water vapour, CO2, ozone -> variable gases, GHG / जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन-> आस्थाई गैस
- N, Argon – inert gases / नाइट्रोजन, आर्गन – अक्रिय गैस
- Atmospheric gases- no chemical interaction among them / वायुमंडलीय गैस – आपस में रासायनिक आभिक्रिया नहीं करते
- They don’t lose their properties / ये आपना गुण-धर्म नहीं खोते
- They act as a single unified gas / ये स्वतः एकीकृत गैस के रूप में व्यहार करते है l
वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर हवा के विस्तृत भंडार को कहते हैं। यह सौर विकिरण की लघु तरंगों को पृथ्वी के धरातल तक आने देता है। परन्तु पार्थिव विकिरण की लंबी तरंगों के लिए अवरोधक बनता है। इस प्रकार यह ऊष्मा को रोककर विशाल ‘ग्लास हाउस‘ की भांति कार्य करता है जिससे पृथ्वी पर
औसतन 15°C तापमान बना रहता है। यही तापमान पृथ्वी पर जीवमंडल के विकास का आधार है। वायुमंडल के संघटन वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण है जिसमें ठोस और तरल पदार्थो के कण असमान मात्राओं में तैरते रहते हैं। नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में है। उसके बाद क्रमशः आक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन–डाई–ऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, ओजोन व हाइड्रोजन आदि गैसों का स्थान आता है। इसके अलावा जलवाष्प, धूल के कण तथा अन्य अशुद्धियाँ भी असमान मात्रा में वायुमंडल मे मौजूद रहती है। संसार की मौसमी दशाओं के लिए जलवाष्प, धूल के कण तथा ओजोन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। विभिन्न गैसों की 99% भाग मात्र 3 किमी. की ऊंचाई तक सीमित है जबकि धूलकणों व जलवाष्प का 90% भाग अधिकतम 10 किमी. की ऊंचाई तक ही मिलता है।
नाइट्रोजन (78% ): यह वायुमंडलीय गैसों का सर्वप्रमुख भाग है। लेग्यूमिनस पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजनी पोषक तत्वों की पूर्ति करते हैं।
आक्सीजन (21%): यह मनुष्यों व जन्तुओं के लिए प्राणदायिनी गैस है। पेड़–पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा इसे वायुमंडल में छोड़ते हैं।
आर्गन (0.93%): यह एक अक्रिय गैस है। इसके अलावा वायुमंडल में हीलियम, निऑन, क्रिप्टन, जेनन जैसी अक्रिय गैसें भी अल्प मात्रा में मौजूद रहती हैं।
कार्बन–डाई ऑक्साइड (0.03%) : यह एक भारी गैस है। सौर विकिरण के लिए यह पारगम्य है किन्तु पार्थिव विकिरण के लिए अपारगम्य है। इस प्रकार यह वायुमंडल में ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करती है। इसकी बढ़ती मात्रा से तापमान में वृद्धि होती है। क्योटो प्रोटोकौल (1997 ई.) के द्वारा इसकी मात्रा में कमी किए जाने के बारे में वैश्विक सहमति बनी है।
ओजोन : यद्यपि वायुमंडल में इसकी मात्रा बहुत कम होती है परंतु यह वायुमंडल का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह एक छन्नी की भांति कार्य करता है और सूर्य की पराबैंगनी किरणों के विकिरण को अवशोषित कर लेता है। यदि ये किरणें सतह तक पहुँच जाती तो तापमान में तीव्रवृद्धि व चर्म कैंसर का खतरा उत्पन्न हो जाता। यह गैस समताप मंडल के निचले भाग में पायी जाती है। 15 से 35 किमी. की ऊँचाई पर यह सघनता से पाया जाता है। जेट वायुयानों से निसत नाइट्रोजन आक्साइड, एयरकंडीशनर, रेफ्रिजेरेटर आदि में प्रयुक्त व निसृत क्लोरो फ्लोरो कार्बन इसकी परत को नुकसान पहुंचाता है। एक अनुमान के अनुसार यदि 500 सुपरसोनिक जेट का एक दल प्रतिदिन उड़ान भरता है तो ओजोन परत में 12% तक हास हो सकता है। ओजोन परत को क्षरित होने से बचाने के लिए मांट्रियल प्रोटोकोल (1987 ई.) पर सहमति बनी है एवं इसके लिए निरंतर अंतर्राष्ट्रीय प्रयास हो रहे हैं।
जलवाष्य : वायुमंडल में प्रति इकाई आयतन में इसकी मात्रा 0 से 4% तक होती है। उष्णाई क्षेत्रों में यह 4% तक एवं मरूस्थलीय व ध्रुवीय प्रदेशों में अधिकतम 1% तक पायी जाती है। ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है। जलवाष्प की कल मात्रा का आधा भाग 2000 मी. की ऊँचाई तक मिलता है। विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है। कार्बन-डाई-ऑक्साइड की तरह ही जलवाष्प भी ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करता है व विकिरण ऊष्मा को सरक्षित रखता है। यह ठोस, द्रव्य व गैस तीनों अवस्था में पाया जाता है। जलमंडल का कुल 0.035% वायुमंडल में सुरक्षित है।
धूलकण : इनमें मुख्यतः समुद्री नमक, सूक्ष्म मिट्टी, धुएँ की कालिख, राख, पराग, धूल तथा उल्कापात के कण शामिल होते हैं। ये मुख्यतः वायुमंडल के निचले स्तर अर्थात् क्षोभमंडल में पाए जाते हैं। ध्रुवीय और विषुवतीय प्रदेशों की अपेक्षा उपोष्ण तथा शीतोष्ण क्षेत्रों में धूल के कणों की मात्रा अधिक मिलती है। ये धूलकण आर्द्रताग्राही या संघनन केन्द्र होते हैं जहाँ वायुमंडलीय जलवाष्प संघनित होकर वर्षण के विभिन्न रूपों की उत्पति का कारण बनते हैं। धूल के कण सूर्यातप को रोकने और उसे परावर्तित करने का कार्य भी करते है। ये सूर्योदय और सूर्यास्त के समय प्रकाश के प्रकीर्णन द्वारा आकाश में लाल व नारंगी रंग की धाराओं का भी निर्माण करते है। धूलयुक्त कुहरा भी धूलकणों की उपस्थिति में बना घना धुंध ही है।