ऐसी मृदाओं को ऊसर मिट्टी भी कहते हैं। लवण मृदाओं में सोडियम, पौटेशियम और मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है। अतः ये अनुर्वर होती हैं और इनमें किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती। मुख्य रूप से शुष्क जलवायु और खराब अपवाह के कारण इनमें लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है। ये मिट्टी शुष्क औरअर्ध-शुष्क तथा जलाक्रांत क्षेत्रों और अनूपों में पाई जाती हैं। इनकी संरचना बलुई से लेकर दुमटी तक होती है। इनमें नाइट्रोजन और चूने की कमी होती है। लवण मृदाओं का अधिकतर प्रसार पश्चिमी गुजरात, पूर्वी तट के डेल्टाओं और पश्चिमी बंगाल के सुंदर वन क्षेत्रों में है। कच्छ के रन में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ नमक के कण आते हैं, जो एक पपड़ी के रूप में ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं। डेल्टा प्रदेश में समुद्री जल के भर जाने से लवण मृदाओं के विकास को बढ़ावा मिलता है। अत्यधिक सिंचाई वाले गहन कृषि के क्षेत्रों में, विशेष रूप से हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में, उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी भी लवणीय होती जा रही हैं। शुष्क जलवायु वाली दशाओं में अत्यधिक सिंचाई केशिकत्व (capillarity) क्रिया को बढ़ावा देती है। इसके परिणामस्वरूप नमक ऊपर की ओर बढ़ता है और मृदा की सबसे ऊपरी परत में नमक जमा हो जाता है। इस प्रकार के क्षेत्रों में, विशेष रूप में पंजाब और हरियाणा में मृदा की लवणता की समस्या से निबटने के लिए जिप्सम डालने की सलाह दी जाती है।
- मृदा समस्या क्षेत्र
- शुष्क क्षेत्रों में खराब जल निकासी
- अधिक सिंचाई
- नहर क्षेत्र
- पश्चमी राजस्थान, पंजाब-हरियाणा, तराई बेल्ट, डेक्कन क्षेत्र
- 2 चरण:
- कैल्सीफिकेशन: मध्यम शुष्कता की स्थिति
- ऊपरी परत में कैल्शियम लवण
- लवणीय मिट्टी: अत्यधिक शुष्क स्थिति
- ऊपरी परत में सोडियम और पोटेशियम लवण
- कैल्सीफिकेशन: मध्यम शुष्कता की स्थिति