शुष्क मृदाओं का रंग लाल से लेकर किशमिशी तक होता है। ये सामान्यतः संरचना से बलुई और प्रकृती से लवणीय होती हैं। कुछ क्षेत्रों की मृदाओं में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि इनके पानी को वाष्पीकृत करके नमक प्राप्त किया जाता है। शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और तीव्रगति से वाष्पीकरण के कारण इन मृदाओं में नमी और ह्यूमस कम होते हैं। इनमें नाइट्रोजन अपर्याप्त और फ़ॉस्फेट सामान्य मात्रा में होती है। नीचे की ओर चूने की मात्रा के बढ़ते जाने के कारण निचले संस्तरों में कंकड़ो की परतें पाई जाती हैं। मृदा के तली संस्तर में कंकड़ों की परत के बनने के कारण पानी का रिसाव सीमित हो जाता है। इसलिए सिंचाई किए जाने पर इन मृदाओं में पौधों की सतत् वृद्धि के लिए नमी सदा उपलब्ध रहती है। ये मिट्टी विशिष्ट शुष्क स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में अभिलक्षणिक रूप से विकसित हुई हैं। ये मिट्टी अनुर्वर हैं क्योंकि इनमें ह्यूमस और जैव पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं।
- रेतीली, ढीली और भुरभुरी
- मिट्टी मोटे बनावट, कम जल धारण क्षमता
- कम पोषक तत्व, कम पोषक तत्व
- कृषि के किये उपयुक्त नहीं
- भारतीय रेगिस्तान की मिट्टी अनोखी है
- यह जलोढ़ से बना है : जलोढ़ पंख का जमाव है
- सूक्ष्म पोषक तत्वों मैजूद
- सिंचाई द्वारा कृषि योग्य
- लवणता और मरुस्थलीकरण के लिए कमजोर