झारखण्ड में हुए जनजातीय सुधारवादी आंदोलनों में खरवार/खेरवाड़ आंदोलन का उल्लेखनीय स्थान है। यह आंदोलन आरंभ में तो एकेश्वरवाद एवं सामाजिक सुधार की शिक्षा देता था, लेकिन अपने दमन के ठीक पूर्व इसने राजस्व बंदोबस्ती की गतिविधियों के विरुद्ध एक अभियान का रूप धारण किया। इस आंदोलन का नेतृत्व खरवार जनजाति के भगीरथ मांझी ने किया। इसी कारण इसे ‘भगीरथ मांझी का आंदोलन’ भी कहा जाता है।
खरवार आंदोलन के प्रमुख तथ्य (for MCQs) :
- अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ हुए अहिंसात्मक संघर्ष में से एक खरवार आंदोलन था।
- यह आन्दोलन 1874 ई. में प्रारंभ हुआ।
- इसका नायक भागीरथ मांझी था।
- इसका स्वरूपं सफाहोड़ आंदोलन से किसी रूप में अलग नहीं था जो बाद के दिनों में अपने असली रूप में प्रकट हुआ।
- इसे मुखर करने का श्रेय राजमहल के भगवान दास एवं दुमका के लंबोदर मुखर्जी को जाता है।
- भागीरथ मांझी ने अंग्रेजी शासन के प्रति असहयोगात्मक नीति अपनाई थी एवं खुद को बौंसी गांव का राजा घोषित कर जमींदारों एवं सरकार को लगान नहीं देकर खुद लगान प्राप्त करने की पद्धति चलाई।
- इनके असहयोग से जुड़े पहलुओं को ही बाद में गांधी जी ने प्रयोग में लाया।
- भागीरथ मांझी का जन्म गोड्डा जिले के तलडीहा गांव में हुआ था, जहां. इन्होंने एक पीठ की स्थापना की थी।
- यह खरवार आंदोलन का दूसरा चरण 1881 की जनगणना के खिलाफ दुविधा गोसांई के नेतृत्व में हुए आंदोलन को माना जाता है।
- भागीरथ मांझी आदिवासियों में ‘बाबा’ के नाम से जाने जाते थे।
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