कोरवा आदिम जनजाति :
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कोरवा को कोलेरियन जनजाति का माना गया है।
- यह जनजाति झारखण्ड राज्य में आदिम जनजाति के रूप में चिन्हित है।
- यह जनजाति मुख्य रूप से पलामू, गढ़वा, लातेहार एवं गुमला जिले में पायी जाती हैं।
- इनकी दो उपजातियां हैं– 1. पहाड़ी कोरवा, और 2. डीहा/डिहारिया कोरवा।
- इस जनजाति की पंचायत को मयारी कहा जाता है।
- इनका सबसे बड़ा देवता सिंगबोंगा है, जिन्हें ये भगवान कहते हैं। इनके पुजारी को बैगा कहा जाता है।
- करमा इनका मुख्य त्योहार है। इनमें सर्प पूजा का भी प्रचलन है।
बिंझिया जनजाति :
- यह जनजाति रांची और सिमडेगा जिले में पायी जाती है।
- ये स्वयं को विंध्यवासी कहते हैं।
- ये लोग सदानी भाषा बोलते हैं।
- इनका मुख्य पेशा कृषि है।
असुर जनजाति :
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असुर झारखण्ड की प्राचीनतम जनजाति है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद, अरण्यक, उपनिषद, महाभारत आदि ग्रंथों में मिलता है।
- ऋग्वेद में असुरों को अनासहः (चिपटी नाक वाले) अव्रत (भिन्न आचरण वाले), मृर्धः वाचः (अस्पष्ट बोलने वाले) तथा आयशी और सुदृढ़ (लौह दुर्ग व अटूट दुर्ग निवासी) कहा गया है।
- असुर जनजाति प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड प्रजाति से संबंधित है।
- इस जनजाति के मुख्य निवास स्थान गुमला, लोहरदगा तथा लातेहार जिला हैं। नेतरहाट के पाट क्षेत्र में इस जनजाति का मुख्य संकेन्द्रण है।
- इस जनजाति की बोली असुरी है, जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा समूह से संबंधित है।
- आदिकाल से असुर लौह-कर्मी रहे हैं। इनका परम्परागत पेशा लौह अयस्कों को गलाकर लोहा प्राप्त करना था। अब वे स्थायी गांवों में रहकर स्थायी कृषि किया करते हैं।
- यह तीन उपजातियों में विभाजित है। ये हैं- वीर, बिरजिया तथा अगारिया।
- असुर समाज पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है।
- असुर गोत्र को पारस कहते हैं।
- इनके अविवाहित वासस्थान को गितिओड़ा के नाम से जाना जाता है।
- सिंगबोंगा इनके सर्वश्रेष्ठ देवता हैं।
- सोहराई, सरहुल, फगुआ, कथडेली, सरहीकुतसी, नवाखानी आदि इनके मुख्य पर्व हैं।
झारखण्ड के आदिवासियों और जनजातियों : click hear to read :
संथाल; उरावं; मुण्डा; हो; खरवार;
खड़िया; भूमिज; लोहरा; गोंड; माहली;
माल पहाड़िया; बेदिया; चेरो; चीक बड़ाइक;
सौरिया पहाड़िया; कोरा; परहिया; किसान;
कोरवा; बिंझिया; असुर; सबर; खोंड;